Thursday 23 July 2015

‎संसद मानसून सत्र और खुलजा सिम सिम‬

विपक्ष चाहे कितना ही शोर मचाए पर आज मानसून सत्र के पहिले दिन यह तो साफ हो गया की विपक्ष के पास कोई ठोस मुद्दे नहीं है सिवाय शोर मचाने के..
ललित मोदी मुद्दा लल्लू साबित हो रहा है अभी तो सिर्फ 'व्यापम' को ही कांग्रेस भुना कर कुछ आस्तीन चढ़ा पाएगी पर यह ज्यादा चढ़ी आस्तीन आने वाले दिनों में कांग्रेस के ही गले का फन्दा बनने वाला है इस असलियत से वह अवचेतन में जान कर डरी हुई भी है. किन्तु फिलहाल तात्कालिक लाभ लेने के लिए वह पूरी तरह से लालायित भी है.
'व्यापम' में अधिकांश हत्यायें केन्द्र में UPA Govt. की पूर्ण मौजूदगी के दौरान में ही हुई हैं, प्रश्न उठता है तब क्यूं नहीं CBI की मांग उठी? केन्द्र ने तब इसमें गहराई में जा कर, तब क्यूं नहीं दिलचस्पी ली??
जबकी विधानसभा चुनावों में शिवराज को घेरने और शिकस्त देने का यह एक स्वर्णिम मुद्दा था फिर भी जानबूझ कर क्यूं आँख मींच ली गई??
यह सब जानते हैं व्यापम में हत्यायें सबूत मिटाने के लिए की जा रहीं थीं तो क्या वे पूर्व में हुई सभी हत्याओं से जुड़े सबूत कांग्रेस के थे? यानी की चतुराई से पहले अपना दामन साफ करो और फिर गाँधी जी को याद करो और फिर जैसे ही मौका लगे, फिर चप्पल उठा कर साहूकार बन जाओ और फिर अपना मजा लो.
मध्यप्रदेश फिलहाल आनेवाले समय में विवादों से घिरा रहने वाला है किन्तु जैसे जैसे जांच अपने चरम पर पंहुचेगी यह तय है कांग्रेस की और डिग्गी राजा दोनों की लुटिया डूबेगी. क्यूं की व्यापम की जड़ों में इनके हाथ की ही रखी हुई ईंटे जो हैं लेकिन फिर भी साहूकारी!!
बेशर्मी और धूर्तता तो कोई इनसे सीखे.. बड़े मंजे हुए खिलाड़ी हैं
पूरा देश डकार जाने के बाद भी ये लोग आज भी भूखे के भूखे ही हैं और अब भी चाहते हैं की एन केन प्रकारेण कैसे भी अलीबाबा का खजाना फिर से इनके हाथों मे आ जाए..
- Keshav Purohit

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